मध्यप्रदेश के इन चार जगहों में रावण को पूजा जाता हैं।


जहां रावण को राक्षस नहीं भगवान माना जाता हैं।



मंदसौर - मंदसौर के खानपुरा ईलाके में नामदेव समाज रावण की पत्नि मंदोदरी को बेटी और रावण को जमाई मानते हैं। और उनकी सालभर पूजा-आरती की जाती है। यहां की महिलाएं रावण की प्रतिमा के सामने से घूंघट लेकर निकलती हैं। मान्यता है कि इस प्रतिमा के पैर में धागा बांधने से बीमारी नहीं होती। यही कारण है कि अन्य अवसरों के अलावा महिलाएं दषहरे के मौके पर रावण की प्रतिमा के पैर में धागा बांधती है।


 



विदिशा - विदिशा जिले के नटेरन तहसील में रावण गांव में रावण की पूजा होती हैं। इस गांव में रावण की 8 फीट लंबी लेटी हुई प्रतिमा हैं। इस गांव में लोग रावण को बाबा कहकर पूजते हैं। यहां उनकी मूर्ति भी हैं और सभी काम शुरू होने से पहले रावण की प्रतिमा की पूजा की जाती है। मान्यता है। कि रावण की पूजा किए बगैर कोई भी काम सफल नहीं होता है। इतना ही नहीं नवदंपति रावण की पूजा के बाद ही गृहप्रवेश् करते हैं।


 



बैतुल - बैतुल जिले के छतरपुर गांव में दशहरे पर रावण की पूजा की जाती है। यहां के आदिवासी समाज के लोग रावण दहन का विरोध करते है। इसकी खास वजह यह भी है कि आदिवासी खुद को रावण का वंश्ज मानते हैं, यहां के छतरपुर गांव में तो रावण का एक मंदिर भी हैं। जिसे रावनवाड़ी कहा जाता हैं। यहां हर साल दषहरा पर मेला का आयोजन किया जाता हैं। जिसमें आदिवासी समाज के लोग अपने आराध्य रावण की पूजा अर्चना करते हैं ।



उज्जैन - शहर में ब्राह्मणों के चार परिवारों में विजयदशमी पर रावण की पूजा होती है। रावण का विद्वान ब्राह्मण के रूप में वेदिक रीति से पूजन किया जाता हैं। रामघाट के तीर्थ पुरोहित धर्माधिकारी नारायण उपाध्याय के परिवार में यह परंपरा हैं। भारद्वाज गोत्र के उनके चार घरों में यह पूजा होती हैं। पं. नारायण उपाध्याय के घर में 100 साल पुराना हाथ से बना चित्र भी हैं, जिसके उपरी हिस्से में शिवजी तथा नीचे रावण का चित्रण हैं।  रावण शिवजी को हिमालय से लेकर आया था। इस चित्र को दशमी के दिन पूजा स्थल पर रखा जाता हैं। रावण की तरफ गोबर से बने कुल्हड़ों में शमी की पत्तियां और नवरात्रि में बोए गए ज्वारे डालकर पूजन किया जाता है। यह परंपरा वंशाानुसार चली आ रही हैं।


 


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