रायसेन - जननायक शहीद बिरसा मुण्डा की जयंती के अवसर पर कलेक्ट्रेट कार्यालय परिसर में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में शहीद बिरसा मुण्डा के छायाचित्र पर पुष्पमाला अर्पित कर उनकी शहादत को याद किया गया। इस अवसर पर डिप्टी कलेक्टर श्री मकसूद अहमद खान, सामाजिक न्याय विभाग की प्रभारी उप संचालक श्रीमती संगीता जायसवाल सहित अन्य अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित थे।
जननायक बिरसा मुण्डा
(जन्म 15 नवम्बर, 1875 - देहावसान 9 जून 1900)
सिंहभूम प्राचीन बिहार का वह भूभाग है जो वर्तमान में झारखंड के नाम से जाना जाता है, यहां की प्रमुख नगरी रांची 19 वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में बिरसा विद्रोह की साक्षी रही है। बिरसा उस महानायक का नाम है जिसने मुंडा जनजाति के विद्रोह का नेतृत्व किया था। एक ईष्ट के रूप में पूजित बिरसा मुण्डा पूरे मुण्डा समाज के साथ-साथ देश के आदिवासी समाज की अस्मिता बन गये। बिरसा ने पूरे जंगलों की प्राणवायु को संघर्ष की ऊर्जा से भर, सबके जीवन का आधार बना दिया था। 15 नवम्बर, 1875 को जन्मे बिरसा मुण्डा के पिता साधना मुण्डा तथा माता करनी मुण्डा खेतिहर मजदूर थे।
बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। कुशाग्र बुद्धि के बिरसा का आरंभिक जीवन जंगलों में व्यतीत हुआ। उनकी योग्यता देख उनके शिक्षक ने बिरसा को जर्मन मिशनरी स्कूल में भर्ती करवा दिया। इसकी कीमत उन्हें धर्म परिवर्तन कर चुकानी पड़ी। यहां से मोहभंग होने के बाद बिरसा पढ़ाई छोड़ चाईबासा आ गये। देश में स्वाधीनता की आवाज तेज होने लगी थी। बिरसा पुनः अपने आदिवासी धार्मिक परंपरा में वापिस लौट आये।
अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीतियों के द्वारा पहले जंगलों का स्वामित्व आदिवासियों से छीना फिर बड़े जमीदारों ने बनवासियों की जमीन हड़पना शुरु की। इस अन्याय के विरुद्ध बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिशों, क्रिश्चियन मिश्नरियों, भूपतियों एवं महाजनों के शोषण व अत्याचारों के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा आदिवासियों के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया। 3 मार्च, 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद कर दिया। जेल में शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए 9 जून, 1900 को बिरसा वीरगति को प्राप्त हो गये। बिरसा मरकर भी अमर हैं। छोटा नागपुर के जंगलों में आज भी बिरसा लोकगीतों में जीवित हैं।
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